14गुल भीतर से रिक्त हुई थी उस घटना को अनेक दिवस व्यतीत हो गए। प्रत्येक दिवस वह किसी ना किसी पर ध्यान केंद्रित करती, उसे निहारती उससे आनंद प्राप्त करती। कुछ दिवस तो प्रसन्नता में व्यतीत हुए किंतु धीरे धीरे गुल उस प्रसन्नता को खोने लगी। जैसे वह कुछ समय का साथ देकर छूट जाने वाला छल हो। पुन: वह किसी भी बात पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करती, कुछ क्षणों के लिए उसे सफलता मिलती किंतु शीघ्र ही उसका मन भटक जाता। वह प्रसन्नता कोई ना कोई छलना करती हुई उसके हाथों से सरक जाती। वह खिन्नता ग्रस्त