द्वारावती - 12

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12प्रभात के प्रथम प्रहर का अवनी पर आगमन हो रहा था। रात्रि भर उत्सव समुद्र के तट पर ही रहा। उसे ज्ञात ही नहीं रहा कि वह रात्रि भर जागता रहा था। अनिमेष दृष्टि से वह समुद्र को देखता रहा था। समुद्र ने अपने रूप को बदल दिया था। समुद्र की तरंगें जो कहीं दूर थी वह अब उत्सव के समीप आ चुकी थी। तरंगों से उठता पानी उत्सव को स्पर्श करता था, किंतु उससे वह विचलित नहीं था। रात्रि भर द्वारका में प्रति घंटे हो रहे शंखनाद से भी वह विचलित नहीं था। वह बस स्थिर सा था। जैसे