कर्म से तपोवन तक - भाग 9

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अध्याय 9 दृष्टि से ओझल होते गालव को अपलक निहारती माधवी निश्चल खड़ी रह गई। इतने बड़े त्याग की उसे स्वयं से अपेक्षा नहीं थी। मानो देवी सरस्वती उसके ह्रदय में विराजमान होकर उससे अनुष्ठान करवा रही थीं। हृदय विदारक निर्णय लिया था उसने। जैसे किनारा सामने था और तभी नौका डगमगाई और भंवर में फंस गई। यह भँवर उसे ले डूबे तो अच्छा है। किंतु जल की तलहटी तक ले जाकर भँवर ने उसे उछाल कर जल स्तर पर ला पटका। वह पुनः भंवर में फंस गई।  " माता, भोजन करके विश्राम करें । आप थकी हुई लग रही