कर्म से तपोवन तक - भाग 8

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अध्याय 8 उत्तर दिशा की ओर जाते हुए गरुड़ सघन वृक्षों में समा गया । गालव ने कुटिया को मुग्ध दृष्टि से देखा। कितनी रुचि से उसने अपने और माधवी के लिए कुटिया का निर्माण किया था। अंतरंग संबंध तो बने उनके लेकिन हर दिन गुरु दक्षिणा की चिंता में ही व्यतीत हुआ । वह माधवी को तल्लीनता से प्यार नहीं कर पाया ।  धीरे-धीरे कुटिया नजरों की ओट हो गई और वे पथरीले कंटकाकीर्ण मार्ग में अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चलने लगे। चलते चलते रात हो जाती । फिर दिन निकल आता। फिर दोपहर ढल जाती