कल्पना में की गई बाते या दृश्य कभी सिद्ध नही होते। मौत का सिद्धांत सत्य है। बिल्कुल सत्य पंरतु कल्पना की बाते यकीनन बेकार और बाहरी आडंबर से बनती है। दिमाग अन्दर ही अन्दर चैट करता है तमाम बाते करता है। फालतू की बाते करता है आपको इस भय से आगे बढ़ने के लिए कभी प्रेरित नहीं करेगा। और तो और आपके निजी अंतर मन को खा जायेगा। हमारे मन एक पेड़ है विशाल जिसकी तमाम शाखाएं है। और मैने हर शाखाओं पर अपने फल की कल्पनाओं का जाल बिछाया है। जो की एक दम बेबुनियाद बात है। भूत की