सारिका के मुँह से सोने के कंगन की बात सुनकर रजत स्तब्ध था। उन शब्दों ने रजत को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने सारिका से पूछा, “सारिका तुम कहना क्या चाहती हो?” “रजत जैसा मेरे उस परिवार में हुआ था बिल्कुल ऐसा ही हमारे इस परिवार में भी हो सकता है।” रजत को समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव है। उसने कहा, “सारिका वह कैसे?” सारिका ने उसे समझाते हुए कहा, “रजत जिस सुख की खोज हमारा परिवार कर रहा है, उसे पाने के साधनों को तो हम सब ने अपने तन पर दुशाले की तरह