कुशल बड़े ही भारी मन से अपनी माँ के सोने के कंगन लेकर साहूकार के पास पहुँचा। साहूकार को कंगन दिखाते हुए उसने पूछा, “क्या इन कंगनों को गिरवी रखकर आप मुझे तीन लाख रुपये दे सकते हैं? जब भी मेरे पास पैसे की व्यवस्था होगी मैं यह कंगन वापस ले जाऊंगा।” वज़न दार सोने के सुंदर कंगनों को देखकर साहूकार की आँखों में चमक आ गई। उसने कंगनों की शुद्धता और वज़न देखने के बाद कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें तीन लाख रुपये दे रहा हूँ पर इसका ब्याज तुम्हें देते रहना होगा।” कुशल ने दुखी मन से कंगन