द मिस्ड कॉल - 11 (अंतिम भाग)

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मुजरिम   मैं जब अपने घर की तरफ बढ़ने लगा तो बाइक पर पूरे रास्ते मैं यही सोचते हुए जा रहा था कि मेरे घर वालों का रवैया क्या होगा इस बात पर? ऐसे तो मैं अपने पिताजी को जानता था कि वो धर्म वगैरह को इतना ज्यादा नहीं मानते थे, मगर फिर भी अगर बात अपने घर में मुस्लिम बहू लाने की हो जाए तो इसे स्वीकार करना बहुत ही मुश्किल काम हो जाता है।   कुछ दिनों से मेरी शादी के लिए रिश्ते भी आ रहे थे, मगर मैं ही कोयल के कारण उन रिश्तों को टाल दे रहा था।