- 15 - डॉ. मधुकांत से मिलने के पश्चात् जब प्रिंसिपल और शीतल वापस आ रहे थे तो कार चलाते हुए भी प्रिंसिपल निरन्तर उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने कहा - ‘शीतल, तुमने ठीक कहा था; रक्तदान करने, करवाने की भावना डॉ. मधुकांत के रोम-रोम में बसी हुई है। मैंने सिर्फ़ इतना ही पूछा था कि उन्हें कब सहूलियत रहेगी हमारे कॉलेज में आने के लिए और उन्होंने तुरन्त कह दिया कि इस काम के लिए मेरी सहूलियत का कोई महत्त्व नहीं, यह तो ऐसा पवित्र काम है, जिसके लिए मैं कुछ