सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्मा ने सनकादि पुत्रों को उत्पन्न किया और वे निवृत्ति परायण हो गये तब इन्हें बड़ा क्षोभ हुआ। इस क्षोभ के कारण ब्रह्मा रजोगुण और तमोगुण से अभिभूत हो गये। इससे ब्रह्मा के दाहिने अंग से स्वायम्भुव मनु की और बायें भाग से शतरूपा की उत्पत्ति हुई। स्वायम्भुव मनु ने जब तपस्या के द्वारा शक्ति संचय करके सृष्टि की अभिवृद्धि करने की आज्ञा प्राप्त की तब उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के आदेशानुसार सकलकारणस्वरूपिणी आद्याशक्ति की आराधना की। इनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवती ने वर-याचनाकी प्रेरणा की। स्वायम्भुव मनु ने भगवती से बड़े विनयपूर्वक कहा—‘यदि