अचिन्त्य परमेश्वर की अतर्क्स लीला से त्रिगुणात्मक प्रकृति द्वारा जब सृष्टि-प्रवाह होता है तो उस समय रजोगुण से प्रेरित वे ही परब्रह्म परमात्मा सगुण होकर अवतार ग्रहण करते हैं। वस्तुतः यह जगत् परमात्मा का लीला-विलास है, लीलारमण का आत्माभिरमण है, इसलिये भगवान् अपनी लीला को चिन्मय बनाने के लिये अपने ही द्वारा निर्मित जगत् में अन्तर्यामी रूप से स्वयं प्रविष्ट भी हो जाते हैं ‘तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्।’ वे परम प्रभु अजायमान होते हुए भी बहुत रूपों में लीला करते हैं ‘अजायमानो बहुधा विजायते।’ उनकी यह लीला उनके अपने आनन्द-विलास के लिये होती है, जिसके फलस्वरूप भक्तों की कामनाएँ भी पूर्ण हो