प्रेम गली अति साँकरी - 149

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149=== =============== दो ही दिन बीते थे कि अचानक अपने सामने मंगला को देखकर मैं चौंक गई | तैयार होकर अपने चैंबर में जा रही थी कि सामने बरामदे से आती हुई मंगला को देखकर मेरा दिल धड़कने लगा | उसका वहाँ अकेले आना एक सपना ही तो था | उसे देखकर जैसे अच्छे खासे मूड में व्यवधान डलने से खीज सी हो आई जैसे मन में आंधी सी चलने लगी|  “आज फिर ये प्रमेश की दीदी पहुँच गई? अभी कई दिनों से शांति थी और उनका कोई फ़ोन आदि भी नहीं आया था| दूसरे पापा, अम्मा और भाई और