उजाले की ओर –संस्मरण

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================== यादों के झरोखे से खिलती, खुलती झरती हँसी हमें रोते हुओं को भी अचानक मुस्कान में तब्दील कर देती है | मुन्ना भैया को मिलाकर हमारे घरों के आँगन के चारों ओर बने दस मकान थे |उन्हें मकान कहा जाना उचित नहीं है वैसे क्योंकि मकान मिट्टी, चूने, लकड़ी, ईंटों को मिलाकर बना दो और खड़ा हो जाता है एक मकान ! अब वह कितना बड़ा या छोटा है, यह महत्वपूर्ण नहीं होता | महत्वपूर्ण होता है, उसका घर में परिवर्तित होना | मकान, चाहे वो कोठी हो या फिर बंगला या फिर लंबा चौड़ा महल बनकर मुँह लटकाए