145=== =============== उस रात जैसे बाहर के सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट से मन के भीतर की खड़खड़ाहट संवाद करती रही और मैं एक बेभान सी स्थति में मन के एक कोने से दूसरे में चहलकदमी करती रही | सारे आलम में दूर देश में, वो भी अस्पताल में, डॉक्टर्स-नर्स की सख्त निगरानी में लेटे पापा का आध्यात्मिक चिंतन इतना प्रबल, प्रबुद्ध था जो ज़िंदगी भर साथ रहने के उपरांत भी समझ में नहीं आया था | अब इतनी दूर से बातों की क्लेरिटी हो रही थी | सारी बातों की एक बात थी, सारे चिंतन का एक समग्र परिणाम था