लागा चुनरी में दाग़--भाग(९)

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अब प्रत्यन्चा और शौकत को भागते हुए सुबह हो चुकी थी,वे दोनों एक सड़क से पैदल गुजर ही रहे थे,तभी प्रत्यन्चा ने शौकत से पूछा.... "आपने मुझे बचाकर बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर", "ये तो मेरा फर्ज था बहन!",शौकत बोला... "कुछ भी हो लेकिन मेरी चुनरी पर अब तो दाग़ लग ही चुका है,उन्होंने मेरे पूरे परिवार को खतम कर दिया, मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गई",प्रत्यन्चा बोली... "ऐसा ना कहो बहन,जरा हौसला रखो,वो ऊपरवाला कभी कभी हमारा ऐसा इम्तिहान लेता है कि हमारी रुह काँप जाती है",शौकत बोला.... "ये कैसा इम्तिहान था भाई! मेरी अस्मत के साथ खिलवाड़,क्या