जिन्दगी धूप तुम घना साया

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1.किस बात का रोना है किस बात पर रोते हैकस्ती के मुशाफिर ही कस्ती डुबो देते है2.रत जगे को आंखों की सुर्खियां बताती हैं किस क़दर मोहब्बत है दूरियां बताती हैं।3.उफ्फ ये सर्द हवा... ये " ओस " के कतरे... लगता है अब दर्द हुआ... जनवरी " को साहिबा, दिसंबर के जाने का...!4.कर दे नजरें करम मुझ पर, कि मैं तुझपे ऐतबार कर लूं, दीवानी हूं तेरी ऐसी कि, दीवानगी की हद को पार कर दूं।5.किसी भी भाषा में प्रेम को समझा पाना कहाँ संभव था... साहिबा, इसलिए ईश्वर ने बना दिये...मौन, आंखे और मुस्कराहट...! 6.दौलत के पीछे भागने वाले