“तुम आ गईं, जीजी?” नर्सिंग होम के उस कमरे में बाबूजी के बिस्तर की बगल में बैठा भाई मुझे देखते ही अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ| “हाँ,” मैंने हलके से उसे गले लगाया, “बा कैसे हैं?” बाबूजी की आधी खुली आँखें शून्य में देख रही थीं| वहाँ क्या मृत्यु थी? किसी आधे खुले दरवाज़े पर? चौखट की मुठिया थामे? पायदान पर खड़ी? बिना अड़ानी के? “अभी कुछ कहा नहीं जा सकता|” भाई ने मुझे अपनी कुर्सी पर बैठने का संकेत दिया| “आपकी चाय|” मुझे यहाँ पहुँचाने आई भाभी ने चाय की थरमस भाई के हाथ में दे दी| बाबूजी