17. ऋण चुकाने का अवसर आ गया कान्य कुब्ज नरेश का विशाल सभा कक्ष। पंडित विद्याधर सहित मन्त्रिगण अपने आसन पर आ चुके। वनस्पर बंधु भी सभा में आकर महाराज की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कुछ क्षण में ही महाराज जयचन्द श्री हर्ष एवं कुँवर लक्ष्मण के साथ आकर अपना आसन ग्रहण करते हैं। महाराज जयचन्द अपने हाथ से आचार्य को ताम्बूल वीटक प्रदान करते हैं, यह सम्मान श्री हर्ष को ही प्राप्त है। आचार्य श्री हर्ष स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति हैं, वे किसी से दबते नहीं। महाराज से भी उचित अनुचित पर चर्चा करते और उचित का ही पक्ष लेते।