141==== =============== ये अजीब और अप्रत्याशित घटनाएं ही थीं जिनका कोई सिर-पैर समझ में नहीं आ रहा था | आगे और क्या-क्या होना था, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी जैसे चित्र किसी आवरण में लिपटा हुआ हो, जैसे कोई परछाई! अब परछाई में क्या तलाश किया जाता, वह तो वैसे ही भ्रम में घुमा ही रही थी | अचानक एक बात और सामने आई, वह भी कुछ अजीब ही लगी | पता चला, पापा ने अम्मा से संस्थान से निकलते हुए न जाने क्यों कहा; “संस्थान में कभी मच्छर नहीं हुए, आज मुझे लगा किसी मच्छर ने ज़ोर