कंचन मृग - 2 जइहँइ वीर जू

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2. जइहँइ वीर जू- बालक उदास था। आँखें भरी हुई थीं। माँ से कहा कि उसे सैन्य बल में नहीं लिया गया। माँ घर की देहरी पर बैठी पत्तल बना रही थी। ‘पतरी तव हइ पेट पालइ का, काहे बिलखत हव’ ‘म्वहिं का कुछ करै का है। तैं दिन भर लगी रहति ह्या तबहुन पेट न भरत। म्वहिं यहइ काम करैं-क है का? ‘हाथ पांव चलइहव तौ रोटी मिलइ ! ये ही मा सुख मिलइ।’ ‘काम मा म्वहिं लाज नाहीं आवइ। घ्वरसवार बनै क मन रहइ। घ्वर सवार कइ कमाई ज्यादा हवै। का त्वार मन नाहीं कि म्वहिं कुछ ज्यादा