प्रमोद जी के हँसने पर प्रत्यन्चा ने पूछा.... "अब इसमें इतना हँसने की क्या बात है?" "वो तो मैं तुम्हारी नादानी पर हँस रहा था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "क्यों भला? क्या मैं इतनी नादान हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "हाँ! तुम सच में बहुत नादान हो",प्रमोद मेहरा जी बोले.... "तो ऐसा मैं क्या करूँ कि नादान ना दिखूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "तुम जैसी हो वैसी ही रहो,तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है",प्रमोद मेहरा जी बोले... और फिर वे प्रत्यन्चा से ऐसे ही बातें करते रहे,दिनभर ऐसे ही बीत गया और रात के खाने के बाद वे अपने दोस्त सुभाष और प्रत्यन्चा के पिता