अध्याय -1मै रोज की तरहां घंटी लगने पर ही स्कूल के लिए कमरे से निकलता था क्योकि मेरा कमरा स्कूल के बिल्कुल सामने ही था, उस दिन मै निकला और रोज़ की तरहां ही दौड़कर स्कूल की दुसरी मंजिल पर बैंग रखकर वापस निचे प्रार्थना सभा में आना था।(हमारी कक्षा दुसरी मंजिल पर लगती थी) उस दिन को मेरी जिंदगी का ऐतिहासिक दिन बनना था यह मेरे को तनिक भी ज्ञात नहीं था। मै दौड कर जैसे ही एक हाथ से सिढ्ढीयो की रेलिंग को पकड़ कर दो-दो, तीन -तीन सिढ्ढया चढ रहा था, मेरी नजरें दौड़ने के कारण निचे