127==== ================= संस्थान में प्रवेश करते ही मेरा मन किसी जकड़न से छूटने लगा और गाड़ी रुकते ही जैसे एक खुले पवन के झौंके की तरह मैं एक बच्चे की तरह भागती हुई बरामदे की ओर जैसे उड़ आई | गार्ड मुझे नमस्ते करता रह गया | मैं अपना सारा सामान गाड़ी में छोड़कर भाग आई थी | जबकि शोफ़र ने बरामदे तक आकर गाड़ी रोकी थी | मुझे देखते ही वहाँ के कर्मचारियों में शोर मच गया | मेरे इतनी जल्दी किसी को भी आने की आशा नहीं होगी | अभी सब नाश्ते पर बैठे ही थे कि महाराज