डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा की तीन लघुकथाएँ गले की फाँस"ये क्या मिश्रा जी, अगले महीने सेवानिवृत्त होने के बाद आप फिर से इसी ऑफिस में संविदा नियुक्ति चाहते हैं ? लगता है चालीस साल की नौकरी करने के बाद भी आपका मन भरा नहीं..." डायरेक्टर साहब ने मिश्रा जी से मजकिया अंदाज में पूछा।"सर, दरअसल मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है क्योंकि अपने परिवार में कमाने वाला मैं अकेला ही ही हूँ।" मिश्रा जी ने अपनी मजबूरी बताई।"क्या... ? मैंने तो सुना है कि आपका बेटा रमेश तो बहुत होनहार स्टूडेंट है। क्या वह कुछ नहीं करता ?" डायरेक्टर साहब