आँच - 14 - यह है वतन हमारा ! (भाग-1)

  • 1.9k
  • 798

अध्याय चौदह यह है वतन हमारा ! इस साल भयंकर गर्मी थी। लू चली। गाँव-हर सभी जगह हैज़ा फैल गया। प्याज और पुदीने के रस की माँग बढ़ गई। हकीम-वैद्य दौड़ते रहे पर गाँव के गाँव खाली होते रहे। एक लाश को लोग जला या दफ़्न कर आते दूसरी तैयार। सभी परेशान थे। वर्षा हुई ताल-तलैया भर गए पर हैज़ा का उफ़ान कम नहीं हुआ। हैज़ा के प्रकोप से हम्ज़ा के अब्बू शौक़त अली हम्ज़ा भी चल बसे। वही कमाने वाले थे घर में कुहराम मच गया। नसरीन और उसकी अम्मी को तो जैसे होश ही नहीं रहा। जनाज़ा उठा।