प्रेम गली अति साँकरी - 124

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124==== =============== मैं जानती थी कि मेरे दीदी के पास पहुँचने से दीदी और उनके लाडले प्रमेश को एक झटका ही लगने वाला था | एक सूनापन उनकी दृष्टि में से पसरकर मेरे भीतर रेंग गया लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और जैसा मैं समझती हूँ उन्हें मुझसे कुछ कहने का कोई साहस नहीं था | मैं बिंदास वहाँ जाकर खड़ी हो गई |  “खीर बनाएगा ?” दीदी ने मुझे ऊपर से नीचे तक लगभग घूरते हुए पूछा जिससे मेरे मुँह में कुछ मीठा सा हो आया | क्यो आखिर किस बात से डरते हैं ये लोग? ऐसे ही