उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रो! सभी मित्रों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की कामना !   अनेकानेक बंधनों, अड़चनों, परेशानियों के बीच भी जीवन चलता है, बहता है। ठहरता है, ठिठकता है, सहमता है फिर भी चलता है। कारण? जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम ! थम जाना तो जीवन नहीं, उसका अपमान है। वास्तव में इस खूबसूरत दुनिया को बनाने वाले का, जीवन के प्रदाता का अपमान हम कैसे कर सकते हैं? जिस प्रकार हम स्वयं को इस दुनिया में लाने वाले अपने माता-पिता की अवहेलना नहीं कर सकते। भिन्न मित्रों के अनुभवों व स्वयं के अनुभवों से पता चलता