अध्याय आठ खुश रहो अहले वतन ! लखनऊ की हर गली में जाने आलम की ही चर्चा। अँग्रेज बहादुर के बर्ताव की भी आलोचना होती लेकिन दबी ज़बान से। अवाम वाजिद अली शाह की नेकनीयती, दरियादिली की कायल थी। तीतर-बटेर बाज़ से लेकर बड़े-बड़े व्यापारी संभ्रान्त भी दुखी थे। ऐसा बादशाह कहाँ मिलेगा? जब भी हिन्दू या मुस्लिम का कोई तबका कुछ गड़बड़ करता जाने आलम दानिशमंदी और हिम्मत से उसका सामना करते। उन्हें लड़ाई झगडे़ से नफ़रत थी। अमन पसन्द करते थे और चाहते थे कि अवाम भी अमन-चैन से रहे। संगीत में रुचि थी। खुद ‘अख़्तर’ उपनाम से