: दिलीप जैन का उपन्यास देर आयद पिछले दिनों पढ़ने को मिला इस उपन्यास को पढ़ते समय मैंने महसूस किया कि बरसों पहले जो सामाजिक उपन्यास लिखे जाते थे जिनमें से कुछ तो पाठ्यक्रम में भी रहे लगभग उस शैली का वैसे संवादों का और लगभग वैसे ही मुद्दों का यह उपन्यास लिखने का प्रयास दिलीप जैन साहब ने किया है हालांकि यह उपन्यास छठे और सातवें दशक के क्लासिक उपन्यास की उच्चता तक नहीं पहुंच पाया फिर भी दिलीप जैन ने जो लेखन का सिलसिला आरंभ किया है उसमें उनसे उम्मीद बनती हैं कि वे आगे भी अच्छे उपन्यास