ब्रह्मपिचाश व हिमालयी संत

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अभी भी याद आ रहा है, जब मैं अपने गाँव के उस बुजुर्ग पंडीजी से यह कहानी सुन रहा था तो भूत-प्रेत के साथ ही उनकी यात्रा के दौरान विस्मय कर देने वाली बातें तो मुझे एक ऐसी दुनिया की सैर करा रही थीं, जहाँ से मैं बिलकुल हीअनजान था और तब यह सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा भी है या ऐसा भी हो सकता है? जी हाँ, घटना घटने के समय हमारे गाँव के वो खमेसर पंडीजी बर्मा (अब म्यांमार) में चीनी मिल में नौकरी करते थे। आज भी गाँवों आदि में अगर कोई व्यक्ति गाँव से