वैदेही की तरफ से कोई हलचल न मिलने की वजह से अधिराज गुस्से में कहता है....." बहुत हो गया वैदेही , , हमें तुम्हारा ये स्वांग बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है... वैदेही उठो....."अब आगे......…..अधिराज वैदेही को उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी सारी कोशिश बेकार हो रही थी तभी उसी नजर वैदेही के पैरों पर पड़ती है जहां सर्प दंश का निशान था , बिना देर किए अधिराज अपने पंखों को फैलाते हुए वैदेही अपनी बाहों में भर कर पंचमढ़ी की तरफ उड़ जाता है..."अधिराज अधिराज " किसी की घबराई हुई आवाज से अधिराज अपने ख्यालों से