साथिया - 57

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" क्या आपने पिता जैसे चाचा के लिए इतना भी नहीं कर सकती.!" अवतार बोले तो साँझ जमीन पर गिर रोने लगी। रोते रोते थक गई पर किसी का कलेजा नहीं पसीजा। अवतार और भावना ने उसे उठाया और घर के बाहर चल दिए प्रथाओ के नाम बलि चढ़ाने और अपनी औलाद और खुद की गलती की सजा एक मासूम को दिलाने। सांझ की आँखों के आगे अंधेरा छा गया" जज साहब... प्लीज बचा लीजिये मुझे !" उसकी बेहोश होते हुए घुटी सी आवाज निकली। " सांझ...!! " उधर अक्षत ने घबरा के आँखे खोली। शरीर पसीने पसीने हो गया