अध्याय तीनयहि ठइयाँ टिकुली हेराइ गई गोइयाँ! आयशा अब महकपरी बन गई। पर उसकी महक परीख़ाने से बाहर नहीं जा सकती। परीख़ाने में परियाँ हैं, पर उनके पंख कटे हुए। ‘क्या तेरे जीने का मक़सद यही था?’ आयशा ने अपने से पूछा। ‘तेरी हैसियत क्या है? माता-पिता ने क्या नाम रखा था? इसका भी तो पता नहीं। जिसने जन्म दिया उसने किसी दूसरे को दे दिया। उसने नाम रख दिया-राधा। अम्मी के कोठे पर आई तो नाम हो गया आयशा। आयशा से अब महकपरी। साथ की और परियों को देखती हूँ तो मन उदास हो जाता है। परीख़ाने क़ैदख़ाने में