1.मैं लिखना चाहती हूं एक ख़त,इन हवाओं के ज़रिए,मैं पंहुचाना चाहती हूं तुम तक,अपने एहसास,अपने जज़्बात सारे,सुनो,क्या मेरी तरह तुम्हे भी ,हर और दिखाई देता है अक्स मेरा,क्या मेरी आवाजे,गूंजती है तुम्हारे आस पास भी हमेशा?क्या शाम की ठंडी ठंडी हवाएं,मेरे होने का एहसास कराती है तुम्हे,क्या तुम्हारी बेचैनी भी बढ़ा देती है, ये काली ,लंबी रातें स्याह रातें ?क्या धड़कने तुम्हारी भी,कभी कभी मद्धम हो जाती हैं,मेरा चेहरा याद आने पर ,क्या तुम्हारी भी पलकें ,गीली होती हैं मेरे ज़िक्र पर कहीं,क्या रुक जाती है तुम्हारी निगाह भी,अपनी चौखट पर मेरे इंतजार में,क्या तुम्हे भी मेरे लिए ,मर मिटने