मन परिंदा

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1.यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करोवो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करोकोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक सेये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करोअभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगातुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करोमुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँजो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करोकभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक्ाना लिबास मेंजो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मेरे साथ तुम भी चला करोनहीं बे-हिजाब वो