नोट:-- यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक तथा हमारे द्वारा स्वरचित है। कलयुग अपनी चरम सीमा पर तैनात था...मानो अब तो हवा भी सांसों में पाप का जहर घोलने लगी थी। अंबर जो कभी नीला हुआ करता था वो अब मट मैला सा लगता था। लगभग सभी पेड़ नरभक्षी बन चुके थे। इंसानों की इंसानियत कहीं गुम हो चुकी थी वहीं जानवरों की जनवरियत कहीं ढूंढने से नहीं मिल रहा था। समस्त विश्व कलयुगी हाहाकार का साक्षी बन हुआ था। अब हर कोई जाति धर्म के नाम पर नहीं अपितु इंसानियत हेवानियत के नाम पर लड़ते थे। एक तरफ जहां कुछ कलयुग