उलझन - भाग - 13

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निर्मला अपने भाई गोविंद की उत्साह से भरी यह सारी बातें अपनी माँ के पास बैठे हुए सुन रही थी। वह मौन थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और क्या करे? इस समय उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था कि वह इन संकटकालीन बादलों को किस तरह से साफ़ करे। वह सोच रही थी बहुत ही विकट परिस्थिति मुँह बाये खड़ी है; जब गोविंद और बुलबुल यहाँ एक दूसरे को देखेंगे तब उन्हें असलियत का पता चलेगा। उन्हें तो इस बात का एहसास ही नहीं है कि तक़दीर ने हमारे परिवार के