श्रीधर स्वामी के विषय में प्रामाणिक सामग्री तो उपलब्ध नहीं है, जो किंवदन्तियां हैं, उन्हीं के आधार पर कुछ जानकारी है। महापुरुषों के जीवन के सत्य को ऐसी किंवदन्तियां ही बहुत कुछ प्रकट कर पाती हैं।ईसा की दसवीं या ग्यारहवीं सदी की बात होगी। दक्षिण भारत के किसी नगर में वहाँ के राजा और मंत्री में मार्ग चलते समय भगवान की कृपा तथा प्रभाव के सम्बन्ध में बात हो रही थी। मंत्री कह रहे थे- "भगवान की उपासना से उनकी कृपा प्राप्त करके अयोग्य भी योग्य हो जाता है, कुपात्र भी सत्पात्र हो जाता है, मूर्ख भी विद्वान हो जाता