चोखा मेला महार जाति के थे। मंगलवेढ़ा नामक स्थान में रहते थे। बस्ती से मरे हुए जानवर उठा ले जाना ही इनका धंधा था। बचपन से ही ये बड़े सरल और धर्मभीरु थे। श्रीविट्ठल जी के दर्शनों के लिये बीच-बीच में ये पण्ढरपुर जाया करते थे। पण्ढरपुर में इन्होंने नामदेव के कीर्तन सुने। यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। नामदेव जी को इन्होंने अपना गुरु माना।चोखा जी ज्ञानेश्वर महाराज की संतमण्डली में से एक थे। इनकी भक्ति पर सभी मुग्ध थे। निरन्तर भगवन्नाम चिन्तन करने वाले चोखा जी भगवन्नाम की महिमा गाते हुए एक जगह कहते हैं कि- "इस नाम के प्रताप