उत्सव और बाजार

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पहले उत्सव समाज से जुड़ा था, परिवार से जुड़ा था और जुड़ा था धर्म से। धर्म अब शोभा यात्राओं और शोर शराबे में डूब गया है इसके पीछे एक संगठन काम करता है जो धर्म से सत्ता की फसल काटता है। उत्सव और समाज के बीच अब बाजार आ गया है बाजार हमें यह बताता है कि किस उत्सव को कैसे मनाना चाहिए। अब दीवाली को ही ले लीजिए गिफ्ट में क्या देना है? कपड़े किस ब्रांड और फेशन के खरीदने है। विज्ञापन की दुनिया रात-दिन इस काम में लगी हुई है । धन तेरस में सोने के गहने, नयी