आह्वान प्रेम का - 1

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आह्वान प्रेम का1. तेरी यादों को मैं कितना भुलाऊं,बेझिझक चली आती है चाहे मैं बुलाऊं या न बुलाऊं और हाल दिल का तुझे मैं क्या बताऊं अब रहा नहीं जाता, तुझसे मिलने का बेसब्री से दिल चाहताछोड़ हठ अपनी, आ अब मिलते है, गुल बनकर खिलते हैजो उजाड़ा था चमन हमने,आ फिर से उसमें प्रेम के रंग भरते हैकहानी अधूरी है हमारी,आ उसे पूरी करते हैआ उसे पूरी करते है। Rosha 2. कुछ तुम कहोगी,कुछ तुम पूछोगी इसी प्रतीक्षा में मैंने रात बिता दी।मेरी याद तुम्हें भी तो आती होगी,उन यादों की गोद में तुम भी तो कभी सोती होगीइसी