मेरे सपनों की रानी

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1.प्रेम के इस नदी में उतरती गईइतना डूब गई मैं डूबती ही गई सांस सांसों के बंधन से ऐसा बँधा कितना भी लहर आया मैं तैरती रही हवा के थपेड़ों से मैं जुझती रही फिर भी अपने दम पर खड़ी ही रही कई कांटा मेरे राहों में आए मगर हर कांटों से मैं खुद को बचाती रहीप्यार में खुशियां कम गम ज्यादा मिले पर उस खुशी के लिए मैं मिटती रही प्रियतम को माना है अपना खुदा खुदा को पाने को मैं मचलती रही प्रीत का बंधन ऐसा बंधा सारे बंधन मुझसे जुदा हो गए ये अलौकिक बंधन है सबसे