भक्त सखा श्री सुग्रीवजी

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श्रीसुग्रीव जी न सर्वे भ्रातरस्तात भवन्ति भरतोपमाः। मद्विधा वा पितुः पुत्राः सुहृदो वा भवद्विधाः॥ श्रीराम जी सुग्रीवसे कहते हैं—‘भैया! सब भाई भरत के समान आदर्श नहीं हो सकते। सब पुत्र हमारी तरह पितृभक्त नहीं हो सकते और सभी सुहृद् तुम्हारी तरह दुःख के साथी नहीं हो सकते।’ सभी सम्बन्धों के एकमात्र स्थान श्रीहरि ही हैं। उनसे जो भी सम्बन्ध जोड़ा जाय, उसे वे पूरा निभाते हैं। सच्ची लगन होनी चाहिये, एकनिष्ठ प्रेम होना चाहिये। प्रेमपाश में बँधकर प्रभु स्वामी बनते हैं। वे सखा, सुहृद्, भाई, पुत्र, सेवक-सभी कुछ बनने को तैयार हैं। उन्हें शिष्टाचार की आवश्यकता नहीं, वे सच्चा स्नेह