वृन्दावन में एक संत रहते थे। गौर वर्ण, लंबा शरीर, पैर तक लटकता ढीला-ढाला कुर्ता; शरीर का एक-एक रोम तक सफ़ेद हो गया था। उनके शरीर की थोड़ी झुर्रियां, रोम एवं केशों की श्वेतता ही कहती थी कि उनकी अवस्था पर्याप्त अधिक है। परंतु उनके कुर्ते या चोगे का वजन सात-आठ सेर से अधिक ही रहता होगा। उसे पहने वे बच्चों की भाँति दौड़ते थे। उनका स्वास्थ्य एवं शारीरिक बल अच्छे स्वस्थ सबल युवक के लिये भी स्पृहणीय ही था। श्रीब्रजराजकुमार में उनकी सख्यनिष्ठा थी, अतः वे अपने को ग्वारिया (चरवाहा) कहते थे। संसार को भी उनके परिचय के रूप