महर्षि मैत्रेय पुराणवक्ता ऋषि हैं। वे 'मित्र' के पुत्र होने के कारण मैत्रेय कहलाये। श्रीमद्भागवत में इनके सम्बन्ध में इतना ही मिलता है कि ये महर्षि पराशर के शिष्य और वेदव्यास जी के सुहृद् सखा थे। पराशर मुनि ने जो विष्णु पुराण कहा, उसके प्रधान श्रोता ये ही हैं। इन्होंने स्वयं कहा है–त्वत्तो हि वेदाध्ययनमधीतमखिलं गुरो । धर्मशास्त्राणि सर्वाणि तथाङ्गानि यथाक्रमम्॥ त्वत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मामन्ये नाकृतश्रमम् । वक्ष्यन्ति सर्वशास्त्रेषु प्रायशो येsपि विद्विषः ॥ (विष्णुपुराण १।१।२-३) ‘हे गुरुदेव ! मैंने आपसे ही सम्पूर्ण वेद, वेदांग और सकल धर्मशास्त्रों का क्रमशः अध्ययन किया है। हे मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपा से मेरे विपक्षी भी मेरे लिये