श्री विदुर जी एवं उनकी धर्मपत्नी

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माण्डव्य ऋषि के शापसे यमराजजी ने ही दासीपुत्र के रूपमें धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के भाई होकर जन्म लिया था। यमराजजी भागवताचार्य हैं। अपने इस रूप में मनुष्य-जन्म लेकर भी वे भगवान्‌ के परम भक्त तथा धर्मपरायण ही रहे। विदुरजी महाराज धृतराष्ट्र के मन्त्री थे और सदा इसी प्रयत्न में रहते थे कि महाराज धर्म का पालन करें। नीतिशास्त्र के ये महान् पण्डित और प्रवर्तक थे। इनकी विदुरनीति बहुत ही उपादेय और प्रख्यात है। जब कभी पुत्र-स्नेहवश धृतराष्ट्र पाण्डवों को क्लेश देते या उनके अहित की योजना सोचते, तब विदुरजी उन्हें समझाने का प्रयत्न करते । स्पष्टवादी और न्याय का समर्थक