प्रेम गली अति साँकरी - 116

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116--- =============== पता नहीं क्यों मेरी बेचैनी और भी बढ़ने लगी| परसों? चाहे इस घर में आना-जाना बना रहे पर एक तरह से पराई तो हो ही जाऊँगी न ! दूर तो हो जाऊँगी न ! अभी तक मैं खुद को अम्मा की नाल से बँधा हुआ महसूस करती थी| लगा, अब वह नाल से बंधा रिश्ता खतम हो जाएगा ! क्या कुछ ऐसा ही सब लड़कियाँ अपनी शादी के समय महसूस करती होंगी?यह ‘पराई’ शब्द कितना कठिन है !कितना कष्टकर ! अपने रिश्तों में जब कोई औपचारिकता की बात होने लगती है, तुरंत बोला जाता है; ’हमें पराया मत