उजाले की ओर - - - - संस्मरण -------------------------------------- स्नेहिल सुभोर मित्रो वह अक्सर दुखों का अंबार सिर पर ढोए घूमता रहता है। पूछो तो किसी के साथ कुछ साझा करना नहीं चाहता। इसी प्रकार साल दर साल गुज़र रहे हैं और हम नहीं जानते कि हम स्वयं से ही अपरिचित हो रहे हैं। विधाता ने प्रत्येक मनुष्य को अलग अलग शक्लोसूरत, अलग अलग कदकाठी, अलग अलग रूप रंग दिया है। शायद इसमें कोई उनकी सोच ही रही होगी। या फिर शायद यह सब मनुष्य को अपने कर्मानुसार मिलता होगा। यूँ तो आजकल ज्ञान बाँटने का, गुरुओं का व्यापार इतना