समर्पण

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                                            समर्पण    तृप्ति आखिर पहुंच ही गई उस घर के दरवाजे तक|  राज्य परिवहन की बस से उतरते समय कंडक्टर ने तृप्ति को रास्ता तो बता ही दिया था। पहाड़ी रास्ते से होते हुए तीन किलोमीटर तक चलने के बाद पहुंचा जा सकता था।  तृप्ति  छोटा सा बैग उठाए चलने लगी। रास्ते में होटल वाले से शाम को रुकने की बात करके आगे बढ़ गई। सघन हरियाली, मधुर वातावरण पर मन में व्यग्रता। राह में लोगों से पता