मकान नंबर 18

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वो अमावस की काली रात थी ।एक सुनसान सड़क पर एक कार धीरे-धीरे अपनी मस्ती में चली जा रही थी । कार की दोनो हैडलाइट चालू थी फिर भी न जाने क्यों सड़क पर अंधेरा सा नजर आ रहा था । कार के अंदर बैठा मनोज धीरे धीरे कार को चला रहा था । कार में कोई हिंदी गीत चल रहा था, मनोज भी वो गीत साथ साथ गुनगुना रहा था । रात के दस बज चुके थे और अंधेरा भी पहले से अधिक बढ़ चुका था । मनोज सांसारिक चिंताओं से दूर अपने आप में मग्न होकर कार को